BA Semester-3 DarshanShastra - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2642
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- रसेन्द्रियवाद क्या है? विवेचन कीजिए।

उत्तर -

रसेन्द्रियवाद के अनुसार कर्म विशेष के नैतिक गुण की पहचान करने वाली विशिष्ट इन्द्रिय रसेन्द्रिय है। इस सिद्धान्त की महत्वपूर्ण स्वीकृति यह है कि सौन्दर्य ही नैतिकता का अन्तिम मानदण्ड है। रसेन्द्रियवाद में सौन्दर्यबोध को अधिक महत्व देकर सत् को सुन्दर तथा असत् को असुन्दर में परिणत कर दिया गया है। शैफ्टसबरी और हचिंसन ने रसेन्द्रियवाद को प्रस्तुत किया है। रस्किन और हर्बर्ट आदि विद्वान इस सिद्धान्त के समर्थक हैं।

1. शैफ्टसबरी का मत - शैफ्टसबरी के अनुसार विभिन्न प्रत्यक्षों के समान ही नैतिक इन्द्रिय द्वारा नैतिक आचरण के अनुरूप वस्तुओं का ज्ञान होता है। किन्तु नैतिक-बोध और सौन्दर्यबोध में कोई अन्तर नहीं है। उनका कथन है कि "जो सुन्दर है, वह सत्य है, वह सामन्जस्यपूर्ण और सन्तुलित है, जो सामंजस्यपूर्ण और संतुलित है वह सत्य है, और जो सुन्दर व सत्य दोनों है, वह रुचिकर और शुभ है।' वे पुनः कहते हैं कि "सुन्दर कर्म प्रशंसनीय और असुन्दर, भद्दे तथा कुरूप कर्म निन्दनीय होते हैं। आन्तरिक इन्द्रिय इन कर्मों में स्पष्ट भेद करती है। सौन्दर्य के सभी रूपों का समर्थन लोग बिना किसी शिक्षा के करते हैं। सौन्दर्य के उपयोग से भिन्न या परे कोई यथार्थ शुभ नहीं है। अतः सुन्दर और शुभ के बीच कोई भेद नहीं है।'

2. फ्राँसिस हचिंसन का मत - हचिंसन ने नैतिक इन्द्रिय के सिद्धान्त को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। उनके अनुसार मनुष्य के पास विभिन्न बाह्य इन्द्रियों के समान एक आन्तरिक इन्द्रिय भी है। उनका कथन है कि "सौन्दर्यबोध की यह आंतरिक इन्द्रिय सभी व्यक्तियों में अन्तर्ज्ञात तथा सार्वभौम है। नैतिक इन्द्रिय एक कुशल नायक, एक याचनाग्रही न्यायाभिकर्ता है, जो बुद्धि से परे है।' इस इन्द्रिय के कारण ही लोग कर्म के नैतिक गुण को देखकर प्रसन्न होते हैं। हचिंसन का मत है कि नैतिकता का सहज अनुभव सुन्दरता के अनुभव के समान है। यह उसी के समान आंतरिक भी है। इस प्रकार हचिंसन ने नैतिक और सुन्दर के मध्य तादात्म्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है।

3. रस्किन और हर्बर्ट का मत - रस्किन और हर्बर्ट भी उपर्युक्त मत से सहमत दिखाई देते हैं। उन्होंने भी कर्म के गुणों का बोध करने वाली इन्द्रिय को रसेन्द्रिय कहा है। जो असुन्दर है वह अनिवार्य रूप से असत् नहीं। रैशडेल का कथन है कि "जब कोई अनुभव सौन्दर्य की दृष्टि से शुभ तथा नैतिकता की दृष्टि से अशुभ घोषित किया जाता है तब उसका तात्पर्य यह होता है कि वह हमारी प्रकृति को आंशिक रूप से ही प्रभावित और संतुष्ट करता है, अतः जब सम्पूर्ण मानव प्रकृति से उसकी तुलना की जाती है, तब उसका अनुमोदन संभव नहीं होता है।'

नैतिक अनुभव की कुछ विशेषताएँ हैं जिनका सौन्दर्यबोध में अभाव है। पाप-पुण्य, कर्तव्य तथा उत्तरदायित्व का सौन्दर्य के अनुभव से कोई सम्बन्ध नहीं है। यदि कोई व्यक्ति सौन्दर्य को नहीं समझता है तो वह पाप का भागी होता है। यदि किसी व्यक्ति में नैतिक चेतना के साथ ही सौन्दर्यबोध भी है तो यह अच्छी बात है, किन्तु नैतिक होने के लिए सौन्दर्यबोध का होना अनिवार्य नहीं है। मैकेन्जी का कथन है कि "यदि किसी व्यक्ति में सौन्दर्यबोध नहीं है तब भी वह समाज का एक सम्मानित सदस्य हो सकता है। किन्तु नैतिक चेतना न होने पर वह सभी नैतिक चेतना- सम्पन्न व्यक्तियों की निन्दा का पात्र होगा।' अतः शुभ और सुन्दर एक ही नहीं है। एक ही व्यक्ति में शुभ संकल्प और सौन्दर्यबोध दोनों का साथ-साथ रहना अनिवार्य नहीं है। एक अच्छे कलाकार में सौन्दर्यबोध सूक्ष्म एवं तीव्र होता है कि वह नैतिकता की दृष्टि से निम्नकोटि का हो सकता है। अतः शुभ और सुन्दर को एक कहने का कोई आधार नहीं है।

नैतिक निर्णय तथा सौन्दर्यमूलक निर्णय दोनों ही मूल्यपरक निर्णय हैं। नैतिक निर्णय वस्तुनिष्ठ होते हैं जबकि सौन्दर्यमूलक निर्णय आत्मनिष्ठ होते हैं। उनका मनुष्यों के शारीरिक संगठन की परिवर्तनशीलता के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। नैतिक निर्णय मूल्यपरक हैं तथा वे मानवीय व्यवहार के सभी पक्षों को समाविष्ट करते हैं। रैशडेल का कथन है कि "मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र और मानव अनुभव का कोई भी रूप ऐसा नहीं है जिस पर बुद्धि अपना निर्णय न दे।' किन्तु सौन्दर्य सम्बन्धी निर्णय का सम्बन्ध मनुष्य के विभिन्न व्यापारों तथा क्रियाकलापों के एक अंश से होता है। उसकी गति प्राकृतिक वस्तुओं से परे नहीं है। वह उनके सौन्दर्य के मूल्यांकन तक सीमित है। किन्तु नैतिक निर्णय व्यापक है इसलिए वह कलाकृति पर भी दिया जाता है। इस प्रकार नैतिक निर्णय सौन्दर्यमूलक निर्णय से उच्चकोटि का निर्णय है।

किन्तु नैतिक निर्णय तथा सौन्दर्यमूलक निर्णय के बीच सम्बन्ध है। रैशडेल का कथन है कि - "नैतिक निर्णय सौन्दर्यमूलक निर्णय के प्रदत्तों का उपयोग करता है। सौन्दर्यमूलक निर्णय बतलाता है कि यह सुन्दर है। नैतिक निर्णय से यह निर्देश प्राप्त होता है कि यह विशेष प्रकार का सौन्दर्य स्वभाव से मूल्यवान है। अतः इसे रसेन्द्रिय कहा गया है। उनका मत है कि सौन्दर्यबोध ही नैतिकता का आधार है। रस्किन कहते हैं कि "रुचि नैतिकता का एक अंश और सूची नहीं है,

यह एकमात्र नैतिकता है। मुझे बताओ कि तुम्हारी पसन्द क्या है, और मैं तुमको बता दूँगा कि तुम क्या हो।' हर्बर्ट भी शुभत्व तथा सौन्दर्य के तादात्म्य पर बहुत बल देते हैं। वह नीतिशास्त्र को सौन्दर्यशास्त्र का एक अंग समझते हैं।

रसेन्द्रियवाद में सत् और शुभ का सुन्दर से तादात्म्य स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है। किन्तु सत् और शुभ के प्रत्यय सुन्दर के प्रत्यय से सर्वथा भिन्न हैं। सुन्दर में आकर्षण है और वह किसी व्यक्ति को मोहित कर सकती है, परन्तु उसमें उसे नियन्त्रित करने की क्षमता नहीं है। सौन्दर्यबोध का सम्बन्ध मानवीय चेतना से अवश्य है किन्तु वह उसके सम्मुख बाध्यता उपस्थित नहीं कर सकता है। किसी भी व्यक्ति में सौन्दर्य की प्रशंसा करने अथवा उसे सराहने की आंतरिक बाध्यता नहीं होती है।

सौन्दर्य का मूल्यांकन मौलिक रूप से व्यक्तिगत तथा परिवर्तनशील भावना पर निर्भर है, इसलिए उसे समरूप नहीं कहा जा सकता है। नैतिक मानदण्ड समरूप तथा अपरिवर्तनीय होता है। सौन्दर्य में समरूपता और स्थायित्व नहीं है, अतः उसे नैतिक नहीं कहा जा सकता है। जब सौन्दर्य नैतिक मानदण्ड नहीं है तब उसका सत् और शुभ के प्रत्यय से तादात्म्य स्थापित करने का प्रयत्न बेकार है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञ की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित लोक संग्रह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- गीता के नैतिक या आदर्श सिद्धान्त का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
  5. प्रश्न- गीता में वर्णित गुण की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित स्वधर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- गीता में वर्णित योग शब्द की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- गीता में वर्णित वर्ण एवं आश्रम का विवेचन कीजिए।
  9. प्रश्न- स्थितप्रज्ञ के लक्षण क्या हैं? क्या मनुष्य जीवन में इस स्थिति को प्राप्त कर सकता है? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- निष्काम कर्मयोग का परिचय दीजिए।
  11. प्रश्न- गीता में प्रवृत्ति और निवृत्ति से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- कर्म के सिद्धान्त का महत्व बताइए।
  13. प्रश्न- कर्म सिद्धान्त के दोष बताइए।
  14. प्रश्न- कर्मयोग के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- लोक संग्रह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- भगवद्गीता में 'लोकसंग्रह के आदर्श' की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- पुरुषार्थ के अर्थ एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- पुरुषार्थ की अवधारणा व विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त के रूप में पुरुषार्थ की व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- विभिन्न पुरुषार्थ की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- पुरुषार्थ का विश्लेषण कीजिए।
  22. प्रश्न- पुरुषार्थ में सन्निहित मानवीय मूल्यों के अन्तर्सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- पुरुषार्थ किसे कहते हैं?
  24. प्रश्न- धर्म किसे कहते हैं?
  25. प्रश्न- अर्थ किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- काम किसे कहते हैं?
  27. प्रश्न- धर्म पुरुषार्थ का जीवन में क्या महत्व है?
  28. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र में 'पुनर्जन्म के सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप परिभाषा दीजिए तथा इसके क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए इसकी समस्याओं का विश्लेषण कीजिए।
  30. प्रश्न- धर्म-दर्शन एवं धर्म के परस्पर सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक विवेचन कीजिए।
  31. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। यह ईश्वरशास्त्र से किस प्रकार भिन्न है?
  32. प्रश्न- धर्म और दर्शन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- धर्म का क्या अभिप्राय है? सामान्य धर्म के लिए मनुस्मृति में किन मानवीय गुणों का उल्लेख किया गया है?
  34. प्रश्न- विशिष्ट धर्म किसे कहते हैं? इसके प्रमुख स्वरूपों की व्याख्या कीजिए।
  35. प्रश्न- सामान्य धर्म और विशिष्ट धर्म में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के पंचमहाव्रत सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के अणुव्रत सिद्धान्त का विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की तात्विक पृष्ठभूमि का विवेचन कीजिए।
  40. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  41. प्रश्न- परमश्रेय की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र में 'त्रिरत्न' की अवधारणा की विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- 'बोधिसत्व' किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  45. प्रश्न- निर्वाण के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  46. प्रश्न- 'अर्हत्' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- बुद्ध के नीतिशास्त्र में साधन विचार का विवेचन कीजिए।
  48. प्रश्न- बौद्ध के नीतिशास्त्र सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- गांधीवाद से आप क्या समझते हैं? राज्य के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में महात्मा गांधी की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- गांधीवादी दर्शन का मूल आधार धर्म (सत्य और अहिंसा) था, संक्षेप में स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- गांधी जी की कार्य पद्धति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- सत्याग्रह से आप क्या समझते हैं संक्षेप में समझाइये?
  53. प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा प्रतिपादित ट्रस्टीशिप सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- गाँधी जी के सात सामाजिक पाप कौन-से हैं?
  55. प्रश्न- गाँधी जी के एकादश व्रत कौन-से हैं? व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? परिभाषा देते हुए इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- नीतिशास्त्र मानवशास्त्र से किस तरह जुड़ा है? स्पष्ट कीजिये।
  58. प्रश्न- नीतिशास्त्र की विषय-वस्तु क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  59. प्रश्न- नीतिशास्त्र से क्या अभिप्राय है? इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र बताते हुए भारतीय एवं पाश्चात्य नीतिशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- नीतिशास्त्र की प्रणालियों पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  61. प्रश्न- टेलीलॉजिकल नैतिकता और कर्तव्य आधारित नैतिकता का क्या अर्थ है? इन दोनों में अन्तर बताइए।
  62. प्रश्न- कान्ट के नैतिक सिद्धान्त को समझाइए।
  63. प्रश्न- नैतिक विकास का क्या अर्थ है? नैतिक विकास के चरणों का उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- नीतिशास्त्र एक आदर्श निर्देशक सिद्धान्त है। व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र को प्राथमिक जड़े कहाँ मिलती हैं? स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- क्या नीतिशास्त्र एक विज्ञान है?
  67. प्रश्न- नैतिक तथा नैतिक-शून्य कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  68. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की अवधारणा की व्याख्या कीजिए और उसकी काण्ट के कर्तव्य की अवधारणा से तुलना कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक कर्म तथा नैतिक-शून्य कर्म में अन्तर लिखिए।
  70. प्रश्न- ऐच्छिक तथा अनैच्छिक कर्मों से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- ऐच्छिक व अनैच्छिक कर्म में अन्तर बताइए।
  72. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।
  73. प्रश्न- क्या नैतिक निर्णय कर्मों के परिणाम के आधार पर होता है? विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं अन्य निर्णयों में क्या अन्तर है?
  75. प्रश्न- 'साध्यों का साम्राज्य।' व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- नैतिक चेतना से आप क्या समझते हैं?
  77. प्रश्न- नैतिक चेतना के मुख्य तत्व बताइए।
  78. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति से आपका क्या तात्पर्य है?
  79. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति के लक्षण बताइए।
  80. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? साधन व साध्य का नीतिशास्त्र में क्या महत्व है?
  81. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं तार्किक निर्णय में अंतर क्या है?
  82. प्रश्न- क्या साध्य साधन को प्रमाणित करता है?
  83. प्रश्न- नैतिक निर्णय की आवश्यक मान्यताएँ क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  84. प्रश्न- नैतिकता की मान्यताओं की व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक मान्यताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- नैतिकता में किसका प्राधिकार है "चाहिए" का या आवश्यक का।
  87. प्रश्न- अनैतिक कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  88. प्रश्न- सुखवाद से आप क्या समझते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
  89. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक सुखवाद से आप क्या समझते हैं? समीक्षा कीजिए।
  90. प्रश्न- प्राचीन सुखवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- विकासवादी सुखवाद क्या है?
  92. प्रश्न- उपयोगितावाद के लिये सिजविक की क्या युक्तियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
  93. प्रश्न- बैन्थम के उपयोगितावाद की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  94. प्रश्न- बैंन्थम के स्थूल परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  95. प्रश्न- मिल के परिष्कृत उपयोगितावाद का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  96. प्रश्न- मिल के परिष्कृत परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  97. प्रश्न- उपयोगितावाद एवं अन्तःअनुभूतिवाद के सापेक्षिक गुणों का संकेत कीजिए।
  98. प्रश्न- कर्मवाद का सिद्धान्त भारतीय दर्शन का मुख्य स्तम्भ है। व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- मिल के उपयोगितावाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
  100. प्रश्न- "सुखवाद के विरोधाभास" को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक सुखवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- नैतिक सिद्धान्त के रूप में अन्तः प्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  103. प्रश्न- रसेन्द्रियवाद क्या है? विवेचन कीजिए।
  104. प्रश्न- दार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का समीक्षात्मक विवेचन कीजिए।
  105. प्रश्न- बटलर के अन्तःकरणवाद या अन्तःप्रज्ञावाद सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  106. प्रश्न- नैतिक गुण के विषय में अन्तः प्रज्ञावाद के विचार का विवेचन कीजिए।
  107. प्रश्न- अदार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  108. प्रश्न- काण्ट के अहेतुक आदेश के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
  109. प्रश्न- बुद्धिवाद या कठोरतावाद तथा सुखवाद क्या है? वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- स्टोइकवाद क्या है? व्याख्या कीजिए।
  111. प्रश्न- मध्यकालीन बुद्धिवाद या ईसाई वैराग्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- काण्ट के कठोरतावाद के रूप में आधुनिक बुद्धिवाद की व्याख्या कीजिए।
  113. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक सूत्र का आलोचनात्मक परिचय दीजिए।
  114. प्रश्न- काण्ट के नैतिक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  115. प्रश्न- काण्ट के नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए एवं गीता के निष्काम कर्म से इसकी तुलना कीजिए।
  116. प्रश्न- काण्ट के बुद्धिवादी नीतिशास्त्र का समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  117. प्रश्न- काण्ट के अनुसार निरपेक्ष आदेश “Categorical Imprative” की व्याख्या कीजिए।
  118. प्रश्न- दण्ड के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? दण्ड के प्रतिशोधात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  119. प्रश्न- दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या मृत्युदण्ड उचित है? विवेचना किजिये।
  120. प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  121. प्रश्न- दण्ड का अर्थ तथा उद्देश्य क्या है?
  122. प्रश्न- दण्ड का दर्शन क्या है?

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